Tuesday, 17 October 2017

CATEGORY PH-TDS-PPM – FLOWERS

CATEGORY 

FLOWERS


The pH and elector-conductivity values specified here are given as a broad range. It should be noted that specific plant requirements will vary according to regional climatic conditions, and from season to season within that region. These values are intended for Hydroponic plants only (soil grown plants will differ). Electro-Conductivity (EC) or Conductivity Factor (cF) can be expressed as either milliseconds   (mS), cF, or parts per million (PPM) 1 mS = 10cF = 700ppm

Flowers
PlantspHcFECPPM
African Violets6.0-7.012-151.2-1.5840-1050
Anthurium5.0-6.016.201.6-2.01120-1400
Antirrhinim6.516-201.6-2.01120-1400
Aphelandra5.0-6.018-241.8-2.41260-1680
Aster6.0-6.518-241.8-2.41260-1680
Begonia6.514-181.4-2.4980-1260
Bromeliads5.0-7.58-120.8-1.2560-840
Caladium6.0-7.516-201.6-2.01120-1400
Canna6.018-241.8-2.41260-1680
Carnation6.020-352.0-3.51260-2450
Chrysanthemum6.0-6.218-251.8-2.51400-1750
Cymbidiums5.56-100.6-1.0420-560
Dahlia6.0-7.015-201.5-2.01050-1400
Dieffenbachia5.018-241.8-2.01400-1680
Dracaena5.0-6.018-241.8-2.41400-1680
Ferns6.016-201.6-2.01120-1400
Ficus5.5-6.016-241.6-2.41120-1680
Freesia6.510-201.0-2.0700-1400
Impatiens5.5-6.518-201.8-2.01260-1400
Gerbera5.0-6.520-252.0-2.51400-1750
Gladiolus5.5-6.520-242.0-2.41400-1680
Monstera5.0-6.018-241.8-2.41400-1680
Palms 6.0-7.516-201.6-2.01120-1400
Roses5.5-6.015-251.5-2.51050-1750
Stock6.0-7.016-201.6-2.01120-1400
As a general rule, plants will have a higher nutrient requirement during cooler months, and a lower requirement In the hottest months. Therefore, a stronger nutrient solution should be maintained during winter, With a weaker solution during summer when plants take up and transpire more water than nutrients.
    

CATEGORY PH-TDS-PPM – FRUIT

CATEGORY 

FRUIT



The pH and electro-conductivity values specified here are given as a broad range. It should be noted that specific plant requirements will vary according to regional climatic conditions, and from season to season within that region. These values are intended for Hydroponic plants only (soil grown plants will differ). Electro-Conductivity (EC) or Conductivity Factor (cF) can be expressed as either milliSiemens (mS), cF, or parts per million (PPM) 1 mS = 10cF = 700ppm.

Fruit
PlantspHcFECPPM
Banana5.5-6.518-221.8-2.21260-1540
Black Currant6.014-181.4-1.8980-1260
Blueberry4.0 -5.018-201.8-2.01260-1400
Melon5.5-6.020-252.0-2.51400-1750
Passionfruit6.516-241.6-2.4840-1680
Paw-Paw6.520-242.0-2.41400-1680
Pineapple5.5-6.020-242.0-2.41400-1680
Red Currant6.014-181.4-1.8980-1260
Rhubarb5.0- 6.016-201.6-2.0840-1400
Strawberries5.5-6.518-221.8-2.21260-1540
Watermelon5.815-241.5-2.41260-1680
As a general rule, plants will have a higher nutrient requirement during cooler months, and a lower requirement In the hottest months. Therefore, a stronger nutrient solution should be maintained during winter, With a weaker solution during summer when plants take up and transpire more water than nutrients.

Monday, 16 October 2017

WHAT IS PH/TDS/PPM




WHAT IS PH/TDS/PPM


The pH scale is a way to measure the Acid or Basic (alkaline) in nutrient solution. The official definition of pH is: a unit of measure that describes the degree of acidity or alkalinity of a liquid solution. It is measured on a scale of 0 to 14. Acids are in a range from 0 to 7, with lower numbers being a stronger acid. Alkaline is in the range from 7 to 14, with the higher numbers being a stronger base.
The pH of the nutrient solution is essential to the plants hearth because it will affect how well each element can pass through the root cell wall and nourish the plant. When the pH of the nutrient solution is out of balance the plants are not able uptake the nutrients in the water, basically starving them, even when there is plenty of food.
The pH requirements for plants are not the same for all plants and you should not grow plants with different pH requirements in the same nutrient solution. You will wind up feeding one plant and starving the other, no mater what pH level you keep it at.
We have listed some plant requirements and categorized them by Fruit, Vegetables, Herbs and Flowers for your convenience. Exact plant requirements can very depending on many variables, so it is much more important to be in the ballpark rather than on the decimal point in regards to pH.
Measuring and adjusting the pH of your nutrient solution is quite simple to do, but should be done daily to insure a constant pH level. Testing can be done inexpensively (under $10) using a pH testing kit that generally consist of a small vial that you put some of the solution in. Then you just add some drops to it and shake it up and compare the resulting color to a color chart to get the results. Also you can use pH testing strips. They work basically the same but it’s a small strip of paper you dip in the nutrient solution then compare to the color chart.
If you are looking to be more accurate you can use a pH testing meter. They are electronic and measures down to the decimal point. These pH testing meters can vary in price but are usually under $100.
When measuring the pH you want to mix your nutrients with the water completely first to ensure a true reading. If the reading is not at the proper level you need to adjust it using pH adjusters called “pH up” and “pH down,” Depending on weather your reading is to high or to low. If it’s too high use the pH down, and if it’s too low use the pH up. The pH adjusters can come in a dry or liquid form, either will work fine but make sure you mix it completely before taking another reading. The adjusters vary in price depending on manufacture but are not that expensive

कॉन्ट्रैक्ट खेती क्या है?


कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (ठेका खेती) क्या है?


कई बार ये देखा गया है कि खऱीदार ना मिलने पर किसानों की फसल बर्बाद चली जाती है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह होती है किसान और बाज़ार के बीच तालमेल की कमी। ऐसे में ही कॉन्ट्रैक्ट खेती की ज़रूरत महसूस की गई ताकि फसल की बर्बादी रोकी जाए और किसानों को भी उनके उत्पाद की मुनासिब कीमत मिल सके। सरकार ने केंद्रीय कृषि नीति में, कॉन्ट्रैक्ट खेती के क्षेत्र में, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने का ऐलान किया था। जिस पर नीति आयोग निरंतर कार्य कर रहा हैं।
नीति आयोग द्वारा तैयार किए जा रहे मॉडल कानून में सभी कृषि जिंसों को शामिल किया जाएगा। आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक देश में इकलौता पंजाब एक ऐसा राज्य हैं जहां ठेके पर खेती का अलग कानून है जबकि अन्य 18 राज्यों में एपीएमसी के तहत नियम व शर्तें लागू हैं। आयोग द्वारा सभी का अध्ययन शुरू किया जा चुका है। मौजूदा ठेके में हो रही जमीनी दिक्कतों पर भी गौर किया जा रहा है।
उदाहरण के तौर पर कई कंपनियां और किसानों के बीच आलू, टमाटर समेत अन्य की आपूर्ति के लिए अनुबंध है, लेकिन जैसे ही दाम में ऊपर नीचे होता है, दोनों पक्षों की ओर से अनुबंध की शर्तें डावांडोल होने लगती है। इसे कानूनी जामा पहनाए जाने से किसी भी सूरत में किसानों को नुकसान नहीं होगा। आयोग विशेषज्ञों से राय में ऐसे उपाय खोज रहा है जिनके आधार पर जल्द मसौदा तैयार होगा। उन्होंने बताया कि इसे महज एक या दो जिंसों तक सीमित नहीं किया जाएगा। बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कांट्रैक्ट फार्मिंग पर कानून बनाने का प्रस्ताव किया था।
आयोग के अधिकारी के मुताबिक मसौदा तैयार होते ही राज्य सरकारों, कानून मंत्रालय, कृषि से जुड़ी निजी कंपनियों समेत अन्य से विचार-विमर्श कर उनके सुझाव लिए जाएंगे। उन्होंने बताया कि यह किसान व कंपनी या अन्य के बीच होने वाले आपसी अनुबंध को मजबूती प्रदान करेगा। इसके लागू होने पर किसान को तय बाजार, महंगाई के मुताबिक दाम और दूसरे पक्ष से किए गए करार की शर्तों का लाभ मिलेगा।
अधिकारी के मुताबिक यह मॉडल कानून एपीएमसी और मॉडल पट्टे की भूमि अधिनियम को मजबूती प्रदान करेगा। साथ ही यह सरकार के उस दृष्टिकोण का हिस्सा होगा जिसमें वह ग्रामीण इलाकों में कृषि गतिविधियों को ऊर्जा देने और किसानों की आमदनी दोगुनी करने की कवायद पूरी कर सके। गौरतलब है कि बजट भाषण में जेटली ने कहा था कि यह कानून भूमि अधिग्रहण कानून के आस पास होगा, जिसे विपक्षी दलों के कड़े विरोध के कारण सरकार को छोडऩा पड़ा।
क्या होती है कॉन्ट्रैक्ट खेती?
कॉन्ट्रैक्ट खेती में किसान को एक भी पैसा नहीं खर्च करना पड़ता। खाद बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रैक्टर के जिम्मे होता है। कॉन्ट्रैक्टर ही उसे खेती के गुर बताता है। कॉन्ट्रैक्ट खेती में उत्पादक और खरीदार के बीच कीमत पहले ही तय हो जाती है। फसल की क्वालिटी, मात्रा और उसकी डिलीवरी का वक्त फसल उगाने से पहले ही तय हो जाता है। और यदि बाजार में फसल का दाम ज्यादा होता है तो किसान को प्रॉफिट में भी हिस्सा मिलता है। किसी भी हालत में किसान का नुकसान नहीं होता है।
कांट्रेक्ट खेती का मकसद है –
फसल उत्पाद के लिए तयशुदा बाज़ार तैयार करना। इसके अलावा कृषि के क्षेत्र में पूँजी निवेश को बढ़ावा देना भी कांट्रेक्ट खेती का उद्देश्य है। कृषि उत्पाद के कारोबार में लगी कई कॉर्पोरेट कंपनियों ने कांट्रेक्ट खेती के सिस्टम को इस तरह सुविधाजनक बनाने की कोशिश कि जिससे उन्हें अपनी पसंद का कच्चा माल, तय वक्त पर और कम कीमत पर मिल जाए।
बिचौलियों से किसानों को बचाने के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
अपने खेतों में उपजाए अन्न, हरि सब्जियां अन्य खाद्यान्न की बिक्री किसान खुद की मंडी में कर सकेंगे। अपना उत्पाद बिचौलियों से औने-पौने दाम पर बेचने की मजबूरी नहीं होगी। किसान मेहनत और लागत के आधार पर उत्पादों का मूल्य निर्धारित कर खरीद-बिक्री कर पाएंगे, इससे किसानों को कृषि उत्पादों का उचित मूल्य मिल सकेगा। यह होगा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग योजना से। इसके तहत किसानों को बाजार के साथ खरीदार भी आसानी से मिलेंगे। किसान कृषि उपज को दूसरे जिलों में भी भेजने को स्वतंत्र रहेंगे। झारखंड मार्केटिंग बोर्ड ने इस बावत राज्य के सभी कृषि उत्पादन बाजार समिति को निर्देश जारी कर दिया है। योजना से 46 हजार किसानों को लाभ होगा।
पीपीपी मोड में यार्ड बना सकेंगे किसान
योजनाके अनुसार किसानों का अपना यार्ड होगा। जहां कृषि उत्पाद रखने खरीद-बिक्री का पूरा इंतजाम होगा। इसपर बाजार समिति का अधिकार नहीं होगा। थोक मंडी से बाहर यार्ड का निमार्ण पीपीपी मोड में होगा। यहां से किसान खरीद-बिक्री अकेले और समूह बनाकर कर पाएंगे। कंपनी, सहभागी फर्म, गैर सरकारी संगठन, सोसाइटी भी इससे जुड़ सकते हैं।
कॉन्ट्रैक्ट खेती करने वाले सफलतम किसान की कहानी 
कॉन्ट्रैक्ट खेती ने बनाया करोड़पति, 40 लाख रूपए की ऑडी कार में चलता है ये किसान (किसान ख़बर पोर्टल से)
ब्रिटेन की एक कंपनी के लिए बासमती चावल की करते हैं कॉन्ट्रैक्ट पर खेती
भारत में पिछले दशक में लोकप्रिय हुई कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग आपके फर्श से अर्श तक ले जा सकती है। इसका सबसे बड़ा सबूत है किसान निर्मल सिंह।
कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग की वजह से ही किसान निर्मल सिंह अब 40 लाख रूपए की महंगी ऑडी कार में चलते हैं। दरअसल, निर्मल सिंह बासमती चावल की कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग करते हैं। इनके चावल की धूम ब्रिटेन तक है।
खेती के लिए ठुकराया नौकरी का ऑफर
छोटी-सी उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया। निर्मल सिंह के कंधों पर परिवार का बोझ अचानक आ गया। लेकिन उन्होंने ऐसे समय में नौकरी के बजाय खेती पर ही जोर दिया। पहले उन्होंने ट्रिपल एमए किया। फिर एमएड, एम फिल भी किया।
इसके बाद उन्होंने पीएचडी की, तो उनको एक यूनिवर्सिटी से नौकरी का ऑफर मिला। लेकिन उन्होंने खेती को ही जारी रखने का फैसला किया और नौकरी के ऑफर को ठुकरा दिया।
अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल
खेती के लिए निर्मल सिंह अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करते हैं। धान की रोपाई से वो पहले ट्रैक्टर से खेत को समतल नहीं करते। इससे पैसे की बचत होती है। फिर रोपाई से पहले ही खेत में पानी छोड़ देते हैं।
निर्मल सिंह के मुताबिक इस तकनीक से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। साथ में वो फुव्वारा तकनीक की मदद से पानी देते हैं और आधे पानी में ही उनकी फसल की जरूरत पूरी हो जाती है। यानी यहां भी लागत फिर से कम होती है। ये कुछ वैसी ही तकनीक है जैसी जापान के एक किसान ने 60 साल तक इस्तेमाल किया और बाकी लोगों के ज्यादा चावल पैदा किया। मरने से पहले उस जापानी किसान ने इस तकनीक पर पूरी किताब ही लिख डाली।
लंदन की टिल्डाराइस लैंड से करार
38 साल किसान निर्मल सिंह के पास खुद का 40 एकड़ खेत है। जबकि वो 60 एकड़ खेत और किराए पर ले लेते हैं। इस तरह वो कुल 100 यानी 500 बीघा खेत पर बासमती की खेती करते हैं।
निर्मल सिंह ने 1997 से लेकर अभी तक फसल को कभी मंडी में जाकर नहीं बेचा। बल्कि वो 1997 से ही लंदन की कंपनी टिल्हा राइसलैंड को अपना सारा धान बेच देते हैं।

Friday, 13 October 2017

What is Hydroponics?

What is Hydroponics? In natural conditions, soil acts as a mineral nutrient reservoir but the soil itself is not essential to plant growth. When the mineral nutrients in the soil are dissolved in water, plant roots are able to absorb them. When the required mineral nutrients are introduced into a plant's water supply artificially, soil is no longer required for the plant to thrive. Almost any terrestrial plant can grow like this. This method of growing plants using mineral nutrient solutions (fungicide & nutrient solution commonly known as Beejamrit), in water, without soil is known as hydroponics. Some of the reasons why hydroponics is being adapted around the world for food production are the following: 1) No soil is needed 2) The water stays in the system and can be reused; thus, lower water costs. 3) Stable and high Organic production. 4) Immune to weather 5) Pests and diseases are easier to get rid of than in soil because of the container's mobility 6) Energy and labour saving 7) It is easier to harvest 8) No pesticide damage NEED OF GREEN FODDER FOR COWS Green fodder is the natural diet of cattle. Green fodder is the most viable method to not only enhance milk production, but to also bring about a qualitative change in the milk produced by enhancing the content of unsaturated fat, Omega 3 fatty acids , vitamins, minerals and carotenoids. Modern researches have confirmed that grass fed cow’s milk is very rich in EFAs (Essential Fatty Acids). Omega 3 is the most important constituent of grass fed cow’s milk, particularly for brain and eyes. Some clinical studies indicate that a 1:1 ingested ratio of Omega 6- to Omega 3- (especially linoleic vs alpha-linolenic) fatty acids is important to maintaining cardiovascular health. When a cow is raised on pastures, her milk has an ideal one to one ratio of these two EFAs discussed above. Studies suggest that if your diet contains roughly equal amounts of these two fats, you will have a lower risk of cancer, cardiovascular disease, autoimmune disorders, allergies, obesity, diabetes, dementia and various other mental disorders. Some of the benefits of hydroponic fodder production being 1) Land preservation 2) Water conservation 3) Faster growth and maturity 4) Contamination free 5) Minimal use of Fungicide and Pesticide 6) Less labor and maintenance costs 7) Control over growing environment 8) Highly palatable & Nutritious fodder 9) Time saving 10) Weed free