Tuesday, 17 October 2017

CATEGORY PH-TDS-PPM – FLOWERS

CATEGORY 

FLOWERS


The pH and elector-conductivity values specified here are given as a broad range. It should be noted that specific plant requirements will vary according to regional climatic conditions, and from season to season within that region. These values are intended for Hydroponic plants only (soil grown plants will differ). Electro-Conductivity (EC) or Conductivity Factor (cF) can be expressed as either milliseconds   (mS), cF, or parts per million (PPM) 1 mS = 10cF = 700ppm

Flowers
PlantspHcFECPPM
African Violets6.0-7.012-151.2-1.5840-1050
Anthurium5.0-6.016.201.6-2.01120-1400
Antirrhinim6.516-201.6-2.01120-1400
Aphelandra5.0-6.018-241.8-2.41260-1680
Aster6.0-6.518-241.8-2.41260-1680
Begonia6.514-181.4-2.4980-1260
Bromeliads5.0-7.58-120.8-1.2560-840
Caladium6.0-7.516-201.6-2.01120-1400
Canna6.018-241.8-2.41260-1680
Carnation6.020-352.0-3.51260-2450
Chrysanthemum6.0-6.218-251.8-2.51400-1750
Cymbidiums5.56-100.6-1.0420-560
Dahlia6.0-7.015-201.5-2.01050-1400
Dieffenbachia5.018-241.8-2.01400-1680
Dracaena5.0-6.018-241.8-2.41400-1680
Ferns6.016-201.6-2.01120-1400
Ficus5.5-6.016-241.6-2.41120-1680
Freesia6.510-201.0-2.0700-1400
Impatiens5.5-6.518-201.8-2.01260-1400
Gerbera5.0-6.520-252.0-2.51400-1750
Gladiolus5.5-6.520-242.0-2.41400-1680
Monstera5.0-6.018-241.8-2.41400-1680
Palms 6.0-7.516-201.6-2.01120-1400
Roses5.5-6.015-251.5-2.51050-1750
Stock6.0-7.016-201.6-2.01120-1400
As a general rule, plants will have a higher nutrient requirement during cooler months, and a lower requirement In the hottest months. Therefore, a stronger nutrient solution should be maintained during winter, With a weaker solution during summer when plants take up and transpire more water than nutrients.
    

CATEGORY PH-TDS-PPM – FRUIT

CATEGORY 

FRUIT



The pH and electro-conductivity values specified here are given as a broad range. It should be noted that specific plant requirements will vary according to regional climatic conditions, and from season to season within that region. These values are intended for Hydroponic plants only (soil grown plants will differ). Electro-Conductivity (EC) or Conductivity Factor (cF) can be expressed as either milliSiemens (mS), cF, or parts per million (PPM) 1 mS = 10cF = 700ppm.

Fruit
PlantspHcFECPPM
Banana5.5-6.518-221.8-2.21260-1540
Black Currant6.014-181.4-1.8980-1260
Blueberry4.0 -5.018-201.8-2.01260-1400
Melon5.5-6.020-252.0-2.51400-1750
Passionfruit6.516-241.6-2.4840-1680
Paw-Paw6.520-242.0-2.41400-1680
Pineapple5.5-6.020-242.0-2.41400-1680
Red Currant6.014-181.4-1.8980-1260
Rhubarb5.0- 6.016-201.6-2.0840-1400
Strawberries5.5-6.518-221.8-2.21260-1540
Watermelon5.815-241.5-2.41260-1680
As a general rule, plants will have a higher nutrient requirement during cooler months, and a lower requirement In the hottest months. Therefore, a stronger nutrient solution should be maintained during winter, With a weaker solution during summer when plants take up and transpire more water than nutrients.

Monday, 16 October 2017

WHAT IS PH/TDS/PPM




WHAT IS PH/TDS/PPM


The pH scale is a way to measure the Acid or Basic (alkaline) in nutrient solution. The official definition of pH is: a unit of measure that describes the degree of acidity or alkalinity of a liquid solution. It is measured on a scale of 0 to 14. Acids are in a range from 0 to 7, with lower numbers being a stronger acid. Alkaline is in the range from 7 to 14, with the higher numbers being a stronger base.
The pH of the nutrient solution is essential to the plants hearth because it will affect how well each element can pass through the root cell wall and nourish the plant. When the pH of the nutrient solution is out of balance the plants are not able uptake the nutrients in the water, basically starving them, even when there is plenty of food.
The pH requirements for plants are not the same for all plants and you should not grow plants with different pH requirements in the same nutrient solution. You will wind up feeding one plant and starving the other, no mater what pH level you keep it at.
We have listed some plant requirements and categorized them by Fruit, Vegetables, Herbs and Flowers for your convenience. Exact plant requirements can very depending on many variables, so it is much more important to be in the ballpark rather than on the decimal point in regards to pH.
Measuring and adjusting the pH of your nutrient solution is quite simple to do, but should be done daily to insure a constant pH level. Testing can be done inexpensively (under $10) using a pH testing kit that generally consist of a small vial that you put some of the solution in. Then you just add some drops to it and shake it up and compare the resulting color to a color chart to get the results. Also you can use pH testing strips. They work basically the same but it’s a small strip of paper you dip in the nutrient solution then compare to the color chart.
If you are looking to be more accurate you can use a pH testing meter. They are electronic and measures down to the decimal point. These pH testing meters can vary in price but are usually under $100.
When measuring the pH you want to mix your nutrients with the water completely first to ensure a true reading. If the reading is not at the proper level you need to adjust it using pH adjusters called “pH up” and “pH down,” Depending on weather your reading is to high or to low. If it’s too high use the pH down, and if it’s too low use the pH up. The pH adjusters can come in a dry or liquid form, either will work fine but make sure you mix it completely before taking another reading. The adjusters vary in price depending on manufacture but are not that expensive

कॉन्ट्रैक्ट खेती क्या है?


कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (ठेका खेती) क्या है?


कई बार ये देखा गया है कि खऱीदार ना मिलने पर किसानों की फसल बर्बाद चली जाती है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह होती है किसान और बाज़ार के बीच तालमेल की कमी। ऐसे में ही कॉन्ट्रैक्ट खेती की ज़रूरत महसूस की गई ताकि फसल की बर्बादी रोकी जाए और किसानों को भी उनके उत्पाद की मुनासिब कीमत मिल सके। सरकार ने केंद्रीय कृषि नीति में, कॉन्ट्रैक्ट खेती के क्षेत्र में, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने का ऐलान किया था। जिस पर नीति आयोग निरंतर कार्य कर रहा हैं।
नीति आयोग द्वारा तैयार किए जा रहे मॉडल कानून में सभी कृषि जिंसों को शामिल किया जाएगा। आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक देश में इकलौता पंजाब एक ऐसा राज्य हैं जहां ठेके पर खेती का अलग कानून है जबकि अन्य 18 राज्यों में एपीएमसी के तहत नियम व शर्तें लागू हैं। आयोग द्वारा सभी का अध्ययन शुरू किया जा चुका है। मौजूदा ठेके में हो रही जमीनी दिक्कतों पर भी गौर किया जा रहा है।
उदाहरण के तौर पर कई कंपनियां और किसानों के बीच आलू, टमाटर समेत अन्य की आपूर्ति के लिए अनुबंध है, लेकिन जैसे ही दाम में ऊपर नीचे होता है, दोनों पक्षों की ओर से अनुबंध की शर्तें डावांडोल होने लगती है। इसे कानूनी जामा पहनाए जाने से किसी भी सूरत में किसानों को नुकसान नहीं होगा। आयोग विशेषज्ञों से राय में ऐसे उपाय खोज रहा है जिनके आधार पर जल्द मसौदा तैयार होगा। उन्होंने बताया कि इसे महज एक या दो जिंसों तक सीमित नहीं किया जाएगा। बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कांट्रैक्ट फार्मिंग पर कानून बनाने का प्रस्ताव किया था।
आयोग के अधिकारी के मुताबिक मसौदा तैयार होते ही राज्य सरकारों, कानून मंत्रालय, कृषि से जुड़ी निजी कंपनियों समेत अन्य से विचार-विमर्श कर उनके सुझाव लिए जाएंगे। उन्होंने बताया कि यह किसान व कंपनी या अन्य के बीच होने वाले आपसी अनुबंध को मजबूती प्रदान करेगा। इसके लागू होने पर किसान को तय बाजार, महंगाई के मुताबिक दाम और दूसरे पक्ष से किए गए करार की शर्तों का लाभ मिलेगा।
अधिकारी के मुताबिक यह मॉडल कानून एपीएमसी और मॉडल पट्टे की भूमि अधिनियम को मजबूती प्रदान करेगा। साथ ही यह सरकार के उस दृष्टिकोण का हिस्सा होगा जिसमें वह ग्रामीण इलाकों में कृषि गतिविधियों को ऊर्जा देने और किसानों की आमदनी दोगुनी करने की कवायद पूरी कर सके। गौरतलब है कि बजट भाषण में जेटली ने कहा था कि यह कानून भूमि अधिग्रहण कानून के आस पास होगा, जिसे विपक्षी दलों के कड़े विरोध के कारण सरकार को छोडऩा पड़ा।
क्या होती है कॉन्ट्रैक्ट खेती?
कॉन्ट्रैक्ट खेती में किसान को एक भी पैसा नहीं खर्च करना पड़ता। खाद बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रैक्टर के जिम्मे होता है। कॉन्ट्रैक्टर ही उसे खेती के गुर बताता है। कॉन्ट्रैक्ट खेती में उत्पादक और खरीदार के बीच कीमत पहले ही तय हो जाती है। फसल की क्वालिटी, मात्रा और उसकी डिलीवरी का वक्त फसल उगाने से पहले ही तय हो जाता है। और यदि बाजार में फसल का दाम ज्यादा होता है तो किसान को प्रॉफिट में भी हिस्सा मिलता है। किसी भी हालत में किसान का नुकसान नहीं होता है।
कांट्रेक्ट खेती का मकसद है –
फसल उत्पाद के लिए तयशुदा बाज़ार तैयार करना। इसके अलावा कृषि के क्षेत्र में पूँजी निवेश को बढ़ावा देना भी कांट्रेक्ट खेती का उद्देश्य है। कृषि उत्पाद के कारोबार में लगी कई कॉर्पोरेट कंपनियों ने कांट्रेक्ट खेती के सिस्टम को इस तरह सुविधाजनक बनाने की कोशिश कि जिससे उन्हें अपनी पसंद का कच्चा माल, तय वक्त पर और कम कीमत पर मिल जाए।
बिचौलियों से किसानों को बचाने के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
अपने खेतों में उपजाए अन्न, हरि सब्जियां अन्य खाद्यान्न की बिक्री किसान खुद की मंडी में कर सकेंगे। अपना उत्पाद बिचौलियों से औने-पौने दाम पर बेचने की मजबूरी नहीं होगी। किसान मेहनत और लागत के आधार पर उत्पादों का मूल्य निर्धारित कर खरीद-बिक्री कर पाएंगे, इससे किसानों को कृषि उत्पादों का उचित मूल्य मिल सकेगा। यह होगा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग योजना से। इसके तहत किसानों को बाजार के साथ खरीदार भी आसानी से मिलेंगे। किसान कृषि उपज को दूसरे जिलों में भी भेजने को स्वतंत्र रहेंगे। झारखंड मार्केटिंग बोर्ड ने इस बावत राज्य के सभी कृषि उत्पादन बाजार समिति को निर्देश जारी कर दिया है। योजना से 46 हजार किसानों को लाभ होगा।
पीपीपी मोड में यार्ड बना सकेंगे किसान
योजनाके अनुसार किसानों का अपना यार्ड होगा। जहां कृषि उत्पाद रखने खरीद-बिक्री का पूरा इंतजाम होगा। इसपर बाजार समिति का अधिकार नहीं होगा। थोक मंडी से बाहर यार्ड का निमार्ण पीपीपी मोड में होगा। यहां से किसान खरीद-बिक्री अकेले और समूह बनाकर कर पाएंगे। कंपनी, सहभागी फर्म, गैर सरकारी संगठन, सोसाइटी भी इससे जुड़ सकते हैं।
कॉन्ट्रैक्ट खेती करने वाले सफलतम किसान की कहानी 
कॉन्ट्रैक्ट खेती ने बनाया करोड़पति, 40 लाख रूपए की ऑडी कार में चलता है ये किसान (किसान ख़बर पोर्टल से)
ब्रिटेन की एक कंपनी के लिए बासमती चावल की करते हैं कॉन्ट्रैक्ट पर खेती
भारत में पिछले दशक में लोकप्रिय हुई कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग आपके फर्श से अर्श तक ले जा सकती है। इसका सबसे बड़ा सबूत है किसान निर्मल सिंह।
कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग की वजह से ही किसान निर्मल सिंह अब 40 लाख रूपए की महंगी ऑडी कार में चलते हैं। दरअसल, निर्मल सिंह बासमती चावल की कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग करते हैं। इनके चावल की धूम ब्रिटेन तक है।
खेती के लिए ठुकराया नौकरी का ऑफर
छोटी-सी उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया। निर्मल सिंह के कंधों पर परिवार का बोझ अचानक आ गया। लेकिन उन्होंने ऐसे समय में नौकरी के बजाय खेती पर ही जोर दिया। पहले उन्होंने ट्रिपल एमए किया। फिर एमएड, एम फिल भी किया।
इसके बाद उन्होंने पीएचडी की, तो उनको एक यूनिवर्सिटी से नौकरी का ऑफर मिला। लेकिन उन्होंने खेती को ही जारी रखने का फैसला किया और नौकरी के ऑफर को ठुकरा दिया।
अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल
खेती के लिए निर्मल सिंह अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करते हैं। धान की रोपाई से वो पहले ट्रैक्टर से खेत को समतल नहीं करते। इससे पैसे की बचत होती है। फिर रोपाई से पहले ही खेत में पानी छोड़ देते हैं।
निर्मल सिंह के मुताबिक इस तकनीक से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। साथ में वो फुव्वारा तकनीक की मदद से पानी देते हैं और आधे पानी में ही उनकी फसल की जरूरत पूरी हो जाती है। यानी यहां भी लागत फिर से कम होती है। ये कुछ वैसी ही तकनीक है जैसी जापान के एक किसान ने 60 साल तक इस्तेमाल किया और बाकी लोगों के ज्यादा चावल पैदा किया। मरने से पहले उस जापानी किसान ने इस तकनीक पर पूरी किताब ही लिख डाली।
लंदन की टिल्डाराइस लैंड से करार
38 साल किसान निर्मल सिंह के पास खुद का 40 एकड़ खेत है। जबकि वो 60 एकड़ खेत और किराए पर ले लेते हैं। इस तरह वो कुल 100 यानी 500 बीघा खेत पर बासमती की खेती करते हैं।
निर्मल सिंह ने 1997 से लेकर अभी तक फसल को कभी मंडी में जाकर नहीं बेचा। बल्कि वो 1997 से ही लंदन की कंपनी टिल्हा राइसलैंड को अपना सारा धान बेच देते हैं।

Friday, 13 October 2017

What is Hydroponics?

What is Hydroponics? In natural conditions, soil acts as a mineral nutrient reservoir but the soil itself is not essential to plant growth. When the mineral nutrients in the soil are dissolved in water, plant roots are able to absorb them. When the required mineral nutrients are introduced into a plant's water supply artificially, soil is no longer required for the plant to thrive. Almost any terrestrial plant can grow like this. This method of growing plants using mineral nutrient solutions (fungicide & nutrient solution commonly known as Beejamrit), in water, without soil is known as hydroponics. Some of the reasons why hydroponics is being adapted around the world for food production are the following: 1) No soil is needed 2) The water stays in the system and can be reused; thus, lower water costs. 3) Stable and high Organic production. 4) Immune to weather 5) Pests and diseases are easier to get rid of than in soil because of the container's mobility 6) Energy and labour saving 7) It is easier to harvest 8) No pesticide damage NEED OF GREEN FODDER FOR COWS Green fodder is the natural diet of cattle. Green fodder is the most viable method to not only enhance milk production, but to also bring about a qualitative change in the milk produced by enhancing the content of unsaturated fat, Omega 3 fatty acids , vitamins, minerals and carotenoids. Modern researches have confirmed that grass fed cow’s milk is very rich in EFAs (Essential Fatty Acids). Omega 3 is the most important constituent of grass fed cow’s milk, particularly for brain and eyes. Some clinical studies indicate that a 1:1 ingested ratio of Omega 6- to Omega 3- (especially linoleic vs alpha-linolenic) fatty acids is important to maintaining cardiovascular health. When a cow is raised on pastures, her milk has an ideal one to one ratio of these two EFAs discussed above. Studies suggest that if your diet contains roughly equal amounts of these two fats, you will have a lower risk of cancer, cardiovascular disease, autoimmune disorders, allergies, obesity, diabetes, dementia and various other mental disorders. Some of the benefits of hydroponic fodder production being 1) Land preservation 2) Water conservation 3) Faster growth and maturity 4) Contamination free 5) Minimal use of Fungicide and Pesticide 6) Less labor and maintenance costs 7) Control over growing environment 8) Highly palatable & Nutritious fodder 9) Time saving 10) Weed free

Friday, 25 August 2017

Are Green Potatoes Safe to Eat?

Are Green Potatoes Safe to Eat?
Are green potatoes safe to eat?  Do I have to throw them out?  Can I just peel the green skin off?  Big questions when you’re on a boat and there isn’t a store nearby.  You don’t want to throw away food!



Potatoes start turning green when they are exposed to light.  The green itself isn’t a problem — it’s chlorophyll.  But the same conditions that cause the potato to produce chlorophyll also cause it to produce solanine, a natural toxin that causes nausea and other intestinal upsets.  If you get enough of it, it could cause neurological problems. But the solanine accumulates in the same areas as the chlorophyll, so it’s easy to see where it is.

Okay, if you want to be totally safe, you’d never eat a potato that has even the tiniest bit of green on it.  But if you wanted to be totally safe, you wouldn’t head out cruising.  So here’s my disclaimer:  I’m offering the following information to be helpful in making your own decision, but I won’t be liable for your decision.

Basically, unless you go wild eating green potatoes, you’re not going to get enough solanine to do harm.  One report that I saw said that an adult would have to eat about 4-1/2  pounds of unpeeled green-skinned potatoes at one sitting to suffer serious consequences, while another one stated that it would take 1 pound of a totally green-fleshed potato to make a person sick.  Yeah, right, who’s going to eat a totally green potato?  To be honest, I’ve never even seen one.

Assuming that you’ve just got a green-skinned potato, peeling it will remove most of the solanine that’s there, as it accumulates primarily in the green skin.  A few green spots can also be cut away.  Only the potatoes that have really “gone green” have to be totally thrown away — although use your own judgment if you know that you have any underlying medical conditions that could cause you to be more susceptible.
So if you have some potatoes that are going green, use them in dishes where they are peeled, instead of baking them or otherwise leaving the skin on.  Experts also suggest that even peeled, don’t eat more than a couple per week as your body takes about one day to clear any trace amounts of solanine. Eating them every day could cause the toxin to build up.

If your potatoes have a green tint, can you go ahead and eat them? Anything special you should do? How about potato eyes?How About Eating Potato Eyes?

There’s solanine in the eyes too — in fact, it’s more concentrated there.  So be sure to completely cut any eyes out. Don’t just break off any growth, actually cut the eye itself out of the potato.

Monday, 21 August 2017

Pressure Cooker Safety Tips

What You Need to Know for Safe Pressure Cooking

Scared of cooking with a pressure cooker? These pressure cooker safety tips will set your mind at ease.

Perhaps you have a memory of grandma's pressure cooker spewing spaghetti sauce all over the ceiling. Or maybe you're just intimidated by the idea of the enclosed pot containing so much pressure without exploding. 

But really, there is absolutely nothing to worry about. Today's pressure cookers are built with multiple safety features that ensure that cooks won't have the same explosion issues as in pressure cooker lore of yesterday.


For instance, lids have locks that must be activated before the pressure builds, and these locks won't open until the pressure inside has been released. Most cookers also have valves to release excess pressure.


However, there still are a number of things will make cooking with a pressure cooker safer and more successful. Follow these tips for perfect results with your pressure cooker – without having to scrape spaghetti sauce off your ceiling.

Before cooking, check your equipment. Always check the rubber gasket (the ring of rubber that lines the lid of the cooker) to make sure it isn't dried out or cracked. Some manufacturers recommend replacing the gasket annually, depending on how often you use your cooker. You might want to order an extra to keep on hand in case you discover yours is ripped just as you're starting a recipe. Also check to make sure that there is no dried food on the rim of the pot, which could break the seal.

Don't overfill the cooker. For most foods, don't fill the pressure cooker more than two-thirds full, to avoid the possibility of food blocking the vents. Foods like beans and grains, which tend to swell as they cook, should only fill about half of the cooker.

Use enough liquid. A pressure cooker needs liquid to create the steam that cooks the food. A good recipe will take this into account, but if you're creating your own, you'll need at least 1/2 cup of water or other liquid. If the steam doesn't seem to be building with this amount, open the cooker (releasing any steam first) and add a little more until you reach pressure.

Take care when cooking foods that froth. The frothing can block the steam valves and the pressure release vents. Foods that froth include pasta, rhubarb, split peas, oatmeal, applesauce and cranberries. If you do want to cook these foods, follow a trusted recipe and make sure that the quantity in the pot is well below the recommended maximum fill line.

Don't pressure fry. Yes, the "Colonel" did it, but you shouldn't. Using more than a tiny amount of oil in your pressure cooker can be very dangerous and could melt the gasket and other parts.

Release pressure in a safe way. You can release pressure in three ways: by just removing the cooker from the heat and letting it sit until the pressure goes down (natural release), running cold water over the lid of the closed pan (cold water release), or using the pot's steam release valve to expel the steam (quick release). Make sure to protect your hands with pot holders as you're handing the cooker, and if you're using the quick release method, be sure that your face, hands and body are away from the steam vent. When you open the cooker after the steam has been released, hot steam will still escape from the pan, so as you open the pan, tip the lid away from you and hold it over the pan so that the hot condensation doesn't drip onto you.

Clean the cooker properly. Remove the gasket and wash it separately, along with the lid and the pot. Clean the valve with a wooden toothpick, making sure it moves freely and isn't stuck. Store the cooker with the lid upside down on the pot, rather than locked in place.

प्लास्टिक बैग के नुकसानदायक प्रभाव


प्लास्टिक बैग्स विक्रेताओं और उपभोक्ताओं दोनों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं क्योंकि ये सस्ती, मज़बूत और हल्की होती हैं। हालाँकि आधुनिक समय में इन्हें इतना सुविधाजनक माना जाता है कि इनके बिना रहना असंभव लगता है, परन्तु ये प्रदूषण, वन्यजीवन को खत्म करने और पृथ्वी के कीमती संसाधनों का उपयोग करने के लिए ज़िम्मेदार हैं।

प्रतिवर्ष पूरे विश्व में लगभग 500 खरब प्लास्टिक बैग का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार प्रति मिनिट एक अरब से भी अधिक बैग का उपयोग किया जाता है तथा इनके कारण हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है।

पूरे विश्व में भारत में प्लास्टिक का उपयोग सबसे अधिक किया जाता है। प्लास्टिक के प्रदूषण के कारण तथा हमारे प्लास्टिक बैग के अनावश्यक उपयोग करने के कारण हमारा ग्रह संक्रमित हो रहा है। प्लास्टिक बैग के कुछ नुकसानदायक प्रभाव इस प्रकार हैं:

1) प्लास्टिक बैग प्राकृतिक दृश्यों को ख़राब करते हैं: प्रतिवर्ष अधिक से अधिक प्लास्टिक बैग पर्यावरण को ख़राब कर रहे हैं। ये प्लास्टिक बैग पानी के स्त्रोतों, उद्यानों, समुद्र के किनारे और सड़कों पर मिल जाते हैं। 

2) प्लास्टिक बैग पशुओं को मार डालते हैं : लगभग 100,000 प्राणी जैसे डॉल्फिन्स, कछुए, व्हेल्स, पेंगुइन्स आदि की मृत्यु प्लास्टिक बैग के कारण हो जाती है। कई जानवर इन्हें खाने की चीज़ समझकर खा लेते हैं और इससे उनकी मृत्यु हो जाती है।

 3) प्लास्टिक बैग्स प्राकृतिक तरीके से विघटित नहीं होते (नॉन बायोडिग्रेडेबल) प्लास्टिक बैग्स का प्रयावरण पर सबसे अधिक दुष्प्रभाव यह होता है कि ये नॉन बायोडिग्रेडेबल हैं। प्लास्टिक बैग्स को विघटित होने में लगभग 1000 वर्ष का समय लगता है। 

4) प्लास्टिक बैग्स को बनाने के लिए पेट्रोलियम की आवश्यकता होती है: हम अपनी आवश्यकताओं जैसे कारखानों, परिवहन आदि के लिए तेज़ी से गैर नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं। यदि पेट्रोलियम की आपूर्ति बंद हो गई तो पूरा विश्व आधा हो जाएगा।

Sunday, 20 August 2017

व्रत की विधि कथा


                                           व्रत की विधि कथा |




तीज का व्रत क्यों मनाया जाता हैं

तीज का व्रत क्यों मनाया जाता हैं

तीज का व्रत इसलिए रखा जाता है क्योंकि जितनी भी सौभाग्यवती स्त्रियां है वे अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने अथवा जो अविवाहित युवतियां है वह अपने मन मुताबिक वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत रखती हैं.
इस व्रत कि विशेषता इसलिए और बड जाती है क्योंकि सर्वप्रथम तीज व्रत को माता पार्वती ने भगवन शिव शंकर के लिए रखा था इसलिए तीज का महत्व और ज्यादा बड जाता हैं.
तीज के दिन गौरी−शंकर भगवन की भी पूजा की जाती है और जितनी भी स्त्रियां है जो इस दिन व्रत रखती है वह सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं.
गौरी−शंकर भगवन की भी पूजा करने के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर इनकी प्रतिमा स्थापित की जाती है| इसके अतिरिक्त माँ पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है.
इस दिन रात को तीज के गीत (भजन) और कीर्तन का आनंद लिया जाता है और जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और भगवान् शिव पार्वती विवाह की कथा भी सुनी जाती है.

तीज व्रत की अनिवार्यता और समापन

इस व्रत को पात्र कुवारी कन्यायें या सुहागिन महिलाएं दोनों ही रख सकते हैं परन्तु एक बार अगर आपने व्रत रख लिया तो जीवन पर्यन्त इस व्रत को रखना पड़ता हैं.
अगर किसी प्रकार कोई महिला गंभीर रोगी की हालात या बिमार है तो उसके बदले दूसरी महिला या फिर उसका पति भी इस व्रत को रख सकता हैं.
तीज व्रत का समापन
इस व्रत में जिसने व्रत रखा होता है उसको सोना नहो होता इसलिए वह रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्री जागरण में भाग लेती है.
इस दिन प्रातः काल स्नान करने के पश्चात् श्रद्धा एवम भक्ति पूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन महिला को खाद्य सामग्री, वस्त्र, श्रृंगार सामग्री, फल, मिष्ठान्न एवम यथा शक्ति आभूषण का दान करना चाहिए.

तीज त्यौहार का उत्सव Celebration of Teej Festival in Hindi

तीज के दिन महिलायें पारम्परिक डिज़ाइन के वस्त्र पहनती है, अपना सिंघार करती है अथवा अपने हाथों और पैरों में मेहंदी लगाकर तीज फेस्टिवल का आनन्द लेती हैं.
कई महिला Teej Tyohar के लिए अपने माता-पिता के घर भी जाती है और रक्षा बंधन तक वही रहती हैं और अपने प्रिय भाई के लिए प्रार्थना करती हैं.
जहाँ महिलाएँ अपने भाइयों की लम्बी आयू और घन सम्पति के लिए प्रार्थना करती हैं वही दूसरी और विवाहित महिला / दुल्हन को उसके ससुराल वाले कुछ उपहार देते हैं. ऐसा करना बहुत शुभ माना जाता है.
उत्तरी भारत के आसपास देखा जाने वाला तीज जुलूस देखने योग्य होता है क्योंकि यह तीज माता के सम्मान के लिए भव्य व्यवस्था के रूप में दर्शाया जाता है.
देवी पार्वती या तीज माता की प्रतिमा को सोने के गहरे और सुंदर रेशम से सजाया जाता हैं. इसमें कई प्रकार के संगीत, नृत्य का प्रदंशन होता है जिसे पूरे शहर में चरों और घुमाया जाता है.

Saturday, 19 August 2017

तांबे के बर्तन में पानी पीने के 10 फायदे...



आयुर्वेद में पंचधातु के बर्तनों में खाना अच्छा बताया गया है और इसके फायदों को साइंस भी मानता है. इसी तरह तांबे के बर्तन की भी ऐसी ही कुछ खासियत हैं जो आपकी सेहत के लिए बहुत जरूरी है...

ये हैं तांबे के बर्तन में पानी पीने के 10 फायदे... 

1. तांबा यानी कॉपर, सीधे तौर पर आपके शरीर में कॉपर की कमी को पूरा करता है और बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया से सुरक्षा देता है.

2. तांबे के बर्तन में रखा पानी पूरी तरह से शुद्ध माना जाता है. यह सभी डायरिया, पीलिया, डिसेंट्री और अन्य प्रकार की बीमारियों को पैदा करने वाले बैक्टीरिया को खत्म कर देता हैं.

3. तांबे में एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं जो शरीर में दर्द, ऐंठन और सूजन की समस्या नहीं होने देते. ऑर्थराइटिस की समस्या से निपटने में भी तांबे का पानी फायदेमंद होता है.

4. अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार तांबे कैंसर की शुरुआत को रोकने में मदद करता है और इसमें कैंसर विरोधी तत्व मौजूद होते है.

5. पेट की सभी समस्याओं के लिए तांबे का पानी बेहद फायदेमंद होता है. प्रतिदिन इसका उपयोग करने से पेट दर्द, गैस, एसिडिटी और कब्ज जैसी परेशानियों से निजात मिल सकती है.

6. शरीर की आंतरिक सफाई के लिए तांबे का पानी कारगर होता है. इसके अलावा यह लिवर और किडनी को स्वस्थ रखता है और किसी भी प्रकार के इंफेक्शन से निपटने में तांबे के बर्तन में रखा पानी लाभप्रद होता है.

7. एनीमिया की समस्या में भी इस बर्तन में रखा पानी पीने से लाभ मिलता है. यह खाने से आयरन को आसानी से सोख लेता है जो एनीमिया से निपटने के लिए बेहद जरूरी है.

8. तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से त्वचा पर किसी प्रकार की समस्याएं नहीं होती. यह फोड़े, फुंसी, मुंहासे और त्वचा संबंधी अन्य रोगों को पनपने नहीं देता जिससे आपकी त्वचा साफ और चमकदार दिखाई देती है.

9. तांबे का पानी पाचनतंत्र को मजबूत कर बेहतर पाचन में सहायता करता है. रात के वक्त तांबे के बर्तन में पानी रखकर सुबह पीने से पाचन क्रिया दुरुस्त होती है. इसके अलावा यह अतिरिक्त वसा को कम करने में भी बेहद मदददगार साबित होता है.

10. यह दिल को स्वस्थ बनाए रखकर ब्लड प्रेशर को नियंत्रित कर बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है. इसके अलावा यह हार्ट अटैक के खतरे को भी कम करता है. यह वात, पित्त और कफ की शिकायत को दूर करने में मदद करता है.


ब्रहम मुहूर्त का समय और उसके महत्व



ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मुहूर्त एक ऐसी तालिका है जोकि खगोलीय स्थिति के आधार पर आपके दिन के 24 घंटो की दशा बताता है और ये भी कहा जाता है कि एक दिन में 30 मुहूर्त होते है. दिन रात का 30वा भाग ही मुहूर्त कहलाता है अथार्त 48 घंटो के कालखंड को मुहूर्त कहते है. ब्रहम मुहूर्त रात्रि के चौथे प्रहर को कहा जाता है.

सूर्योदय से पूर्व दिन में दो प्रहार होते है, ब्रहम मुहूर्त उन्ही दो प्रहर में से पहले प्रहर को कहा जाता है. उसके बाद वाले समय को विष्णु मुहूर्त कहते है. अगर समय की बात की जाये तो जिस वक़्त सुबह होती है लेकिन सूर्य अभी दिखाई नही दे रहा होता है, उस वक़्त हमारी घडी हमे प्रातः के 4:24 से 5:12 का समय दिखाती है, उस समय को ब्रहम मुहूर्त कहते है.

ब्रहम मुहूर्त में क्या करना चाहिए :
आप ब्रहम मुहूर्त में 4 काम कर सकते है.

1.)    ब्रहम मुहूर्त में आप वैदिक निति को अपनाते हुए संध्या वंदन कर सकते है क्योकि वैदिक निति से की गई संध्या वंदन को सबसे उचित माना जाता है.
2.)    इस मुहूर्त में आपको ध्यान भी करना चाहिए.
3.)    प्रार्थना के लिए ये समय बहुत उपयुक्त माना जाता है.
4.)    अगर आप विद्यार्थी है तो आप ब्रहम मुहूर्त में अध्ययन जरुर करें, अगर आप ऐसा करते है तो ये आपके लिए बहुत लाभदायी होता है. ये समय अध्ययन के लिए सबसे ज्यादा उत्तम भी माना जाता है.
ब्रहम मुहूर्त में क्या नही करना चाहिए :

1.)    आप ब्रहम मुहूर्त में अपने आप को अपने नकारात्मक विचारो से, बहस, वार्तालाप, सम्भोग, नींद, भोजन, यात्रा, या किसी भी प्रकार के अन्य शोर से दूर रखना चाहिए.

2.)    कुछ लोग सुबह सुबह बहुत जोर जोर से आरती या पूजा पाठ करते है. कुछ लोग तो हवन भी करने लगते है जो उचित नही है क्योकि ऐसा करने से वे न सिर्फ खुद को बल्कि दुसरो को भी संकट में डालते है. अगर आप समझदार है तो आप ऐसे लोगो से दूर ही रहने की कोशिश करे.
 
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ब्रहम मुहूर्त के महत्व :

1.)    ब्रहम मुहूर्त के समय वातावरण में सम्पूर्ण शांति और निर्मलता का वास होता है. ऐसा माना जाता है कि इस समय देवी देवता आकाश में भ्रमण के लिए विचरण करते है. इस समय सत्व गुणों की प्रधानता होती है. ब्रहम मुहूर्त के समय पर ही मंदिरों के दरवाजो को खोल दिया जाता है ताकि मंदिरों में देवी देवता वास कर सके, इसके साथ ही ब्रह्म मुहूर्त के समय ही देवी देवताओ का श्रृंगार और पूजन भी किया जाता है.

2.)    अगर आप सुबह सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठते है तो आपको सौन्दर्य, बल, विद्या और स्वास्थ्य प्राप्त होता है. ये समय ग्रन्थ रचना के लिए भी उत्तम माना जाता है.

3.)    इसके अलावा आधुनिक संसार में वैज्ञानिको के द्वारा शोध करने पर ये भी मिला है की ब्रहम मुहूर्त के समय वातावरण प्रदुषण रहित होता है और इसी समय पर वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा भी सबसे अधिक पाई जाती है. जो हमारे जीवन के लिए सबसे अधिक आवश्यक है, साथ ही हमारे फेफड़ो को भी शुद्ध करती है. शुद्ध वातावरण और वायु मिलने से हमारा मन, मस्तिष्क और स्वास्थ्य भी ठीक रहता है. और इस समय आप अपने शहर की भी सफाई नही कर सकते.

4.)    अगर आयुर्वेद की बात की जाये तो ब्रहम मुहूर्त के समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य माना जाता है. अगर आप ब्रहम मुहूर्त में टहलने जाते है तो आपके शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है.

5.)    रात को नींद पूरी होने के बाद जब हम सुबह उठते है तो हमारे मस्तिष्क और शरीर में नयी स्फूर्ति का वास होता है इसिलिया इस मुहूर्त को अध्ययन के लिए सबसे ज्यादा उत्तम माना जाता है. सुबह के समय ऑक्सीजन के लेवल के ज्यादा होने की वजह से भी मस्तिष्क को ज्यादा उर्जा प्राप्त होती है और इससे जो भी आप उस वक़्त पढ़ते है वो आपकी स्मृति कोष में आसानी से चली जाती है जिसे आप आसानी से भूल नही पाते.


तो उपरलिखित ब्रह्म मुहूर्त में क्या करना चाहिए, क्या नही करना चाहिए और साथ ही ब्रहम मुहूर्त की महता को जाने के बाद उम्मीद है कि आप भी ब्रहम मुहूर्त का अच्छी तरह से उपयोग कर अपने तन, मन और मस्तिष्क को ज्यादा से ज्यादा तेज़ और स्वस्थ बना सकते है.