क्या आप जानते है मक्का की वैज्ञानिक खेती कर के आप अच्छा खासा profit कमा सकते हैं ? जानिए इससे जुडी जानकारी, इसे कैसे करे, रोंगों से बचाव, बिज बोने के तरीके और बहुत कुछ | मक्का एक मोटा अनाज है जो की खरीफ, रबी तथा जायद ऋतु का फसल है | मक्का एक अधिक उपज वाली फसल है, मक्का को Carbohydrates का एक अच्छा श्रोत माना जाता है | मक्का ना केवल इंसान के खाने के काम में आता है बल्कि यह पशुओं के आहार के काम में आता है | मक्का आज Industrial field में अपना एक महत्वापूर्ण जगह बना चूका है | मक्का को खाने के साथ साथ इसका इस्तेमाल oil बनाने के लिए भी किया जाता है | मक्का का maximum use मुर्गियों तथा पशुओं के चारे के रूप में होता है | Industrial area में मक्का से Lotion starch, Chocolate, Protein, Paints, Ink जैसे products को बनाने के लिए किया जाता है | एक तरह से देखा जाये तो मक्का की खेती करने से बहुत से फायदे किये जा सकते है |
कैसे करे मक्के की खेती / How to start Maize Farming
अगर आपके पास 50 से 100 decimal की जमीन हो तो आप उस पर मक्के की खेती कर के आसानी से Rs 25,000 से 40,000 तक कम सकते है वो भी 3 से 4 months के अन्दर, और सबसे अच्छी बात यह है की इसमें मेहनत भी कम लगती है, तो चलिए जानते है कैसे करे मक्का की खेती, विस्तार में :
जलवायु / Climate
मक्का एक hot तथा humid climate का फसल है, इसलिए इसकी खेती के लिए hot तथा humid climate वाले जगहा को चुने | इसकी खेती करने के लिए ऐसे ज़मीन को चुने जहा पानी जमा नहीं होता हो और आसानी से खेत से बाहर निकल जाता हो |
खेत की तयारी कैसे करे : मक्के की खेती करने की लिए इसके खेत को गर्मी के मौसम के end में जब पहली बारिश होती है, जो की june के महीनो में होती है, उस बारिश में अपने खेत को अच्छे से जोत कर अच्छे से पाटा चला कर समतल कर ले | Natural खाद का इस्तेमाल करने से मक्का की फसल अच्छी होती है, इसलिए इसके खाद के लिए पूरी तरह से सड़ी हुई गोबर को जुलाई month के end में अपने खेतो में डाले | जैसे की रबी का मौसम शरू होता है वैसे ही अपने खेत को अच्छे से दो बार जोत कर पाटा चला कर ज़मीन को हलका plane कर ले |
मक्के के बीजो की variety
मक्के के बीज 5 variety के होते है जो की इस प्रकर से है :
Variety | Growth day | Production (Quintal /ha) |
गंगा-5 | 100-110 | 60-90 |
गंगा-11 | 100-110 | 70-80 |
गंगा सफेद-2 | 110-120 | 55-60 |
डेक्कन-101 | 115-125 | 65-70 |
डेक्कन-103 | 1120-125 | 60-65 |
बीज में मात्रा :-
मक्के की खेती करने के लिए यह जानना बहुत ही जरुरी होता है की कितने बड़े ज़मीन में कितने quantaty में बीज लगाना चाहिए |
Seed Types | Quantity |
कम्पोजिट जाति | 15 से 20 kg/ha |
संकर जाति | 10 -15 kg/ha |
हरे चारे (baby corn) | 30 -35 kg/ha |
बुवाई का समय
भारत में प्रायः मक्के की खेती तीनो ऋतुओ में की जा सकती है |
- खरीफ : जो की जून से जुलाई तक की जाती है |
- रबी : जो की अक्टूबर से नवम्बर तक की जाती है |
- जायद : जो की फरवरी से मार्च तक की जाती है
बीजोपचार
मक्के की अच्छी production की लिए बीज को बोने से पहले आपने बीजो को अच्छे से जाच कर ले | मक्की के बीजो को बोने से पहले उन्हें फंफूदनाशक दवा का इस्तेमाल कर ले, दवा की जानकरी के लिए आप आपने नजदीकी agricultural department से मिल कर उन से सलह ले सकते है |
बोने के तरीके
मक्के की बुनाई वर्षा ऋतू के प्रारम्भ में या फिर वर्षा होने से 10 से 15 दिन पहले करनी चाहिए | मक्के के बीज को मेड के ऊपर 4 -6 cm की गहराई में बोना चाहिए | एक महीने के बाद जैसे की मक्के के पौधे निकलने लगेंगे उस पर मिटटी चढाने का काम शरू कर दे |
सिंचाई
मक्के के खेती के लिए अधिक सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती है, मक्के की खेती करने में लगभग 400-600 mm पानी की ज़रूरत होती है | मक्के में जब पुष्पन और दाने भरने का समय होता है तब उने सिंचाई की आवश्यकता होती है |
मक्के के पौधे के प्रमुख रोग
- पत्तियों का झुलसा रोग – इस रोग में पत्तियों को ज्यदा effect होता है | इस रोग में पत्तियों के बिज में लम्बे नाव जैसे आकार बनाकर पत्तियों में भुरे रंज का धब्बा बन जाता है | ये रोग शुरुवात में निचले पत्तियों में होता है और धीरे धीरे यह ऊपर की पत्तियों को भी effect करने लगता है |
इस रोग से बचने की लये जिनेब का 0.12% के घोल को फसलो पर छिडकाव करने से यह रोग दूर हो जाता है | - डाउनी मिल्डयू (Downey mildew) – यह रोग बीज बोने के 2 से 3 सप्ताह के बाद होता है | इस रोग में छोटी हरी पत्तियों में धारिपन आने लगता है तथा effect area में सफेद रुई की तरह दिखाई देने लगता है और यह बीमारी पत्तियों के growth को रोकता है | अपने पौधे को इस रोग से बचाने के लिए डायथेन एम-45 नामक दवा का घोल बना के 3 से 4 बार अपने फसलो पर छिडकाव करे |
- तना सड़न – इस रोग में पौधे से निचले हिस्से यानि के जड़ो में संक्रमण प्रारंभ हो जाता है जिससे की जल्दी सड़ने लगती है, पौधों के पत्तियां पिली पड़ने लगती है और पौधा धीरे धीरे सूखने लगता है |
इस रोग के नजर आते ही 150 ग्रा. केप्टान को 100 ली. पानी में मिला कर पौधों के जड़ो में डाले |
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