Saturday 12 August 2017

Sattu बेचकर करोड़पति बनी कोरियाई महिला, कहा- बिहार की धरती ने मेरे भाग्य बदल दिए


एक कोरियाई महिला बिहार में गरीबों का हेल्थ ड्रिंक कहा जाने वाला सत्तू बेचती मिले तो... यकीनन आपके चेहरे पर मुस्कराहट आ जाएगी। दक्षिण कोरिया के शहर चुन चीआन की निवासी ग्रेस ली करीब 20 साल पहले बिहार आ कर बस गईं। पहले वो खुद सत्तू की दीवानी हुईं और बाद में अपने कोरियाई दोस्तों को इसका दीवाना बनाया।
ग्रेस ली और उनके पति यांज गिल ली को 2005 में स्वास्थ्य संबंधी कुछ परेशानियां हुईं। अपने एक बिहारी दोस्त की सलाह पर ग्रेस ने सत्तू को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। वो बताती हैं, "हमने ये रूटीन बांधा कि रोज हम सुबह के नाश्ते में सत्तू पिएं। इसका जो नतीजा आया, वह बहुत अच्छा था। मैं खुद को ऊर्जा से भरा महसूस करती और मेरे पति की पेट से जुड़ी परेशानियां दूर हो गईं।" दरअसल सत्तू भुने हुए अनाज खासकर, जौ और चने का आटा है। बिहार के लोगों के जीवन में रचा बसा सत्तू प्रोटीन से भरपूर होता है। यह पचने में आसान होता है। शरीर को ठंडा रखने की अपनी खासियत की वजह से गर्मी में लोग इसे खूब खाते हैं।

ली परिवार का बिहार से रिश्ता उसी समय से जुड़ना शुरू हो गया था, जब ग्रेस के पति यांज ली पटना उच्च शिक्षा के लिए आए। 1997 में यांज ली से शादी करके ग्रेस ली भी पटना आ गईं।

ग्रेस ली ने उसके बाद उन्होंने हिन्दी सीखी और बिहार की संस्कृति को नजदीक से देखा। ग्रेस ली हंसते हुए कहती भी हैं, "मैं आधी बिहारी हूं।" ग्रेस ली पटना के एएन कॉलेज में कोरियन भाषा पढाती हैं। सत्तू के सेहत पर पड़ने वाले अच्छे असर को देखते हुए उन्होंने अपने दूसरे कोरियाई दोस्तों से भी इसका स्वाद चखाने की ठानी। उन्होंने 20 लोगों की मदद से सत्तू तैयार करना शुरू किया। जिसे उन्होंने दक्षिण कोरिया में अपने दोस्तों को भेजा। उन्होंने भारत में रहने वाले अपने कोरियाई मित्रों को भी सत्तू भेजा।

ग्रेस ली हर साल 40 किलो सत्तू दक्षिण कोरिया और दो क्विंटल सत्तू भारत में रहने वाले अपने कोरियाई दोस्तों को 500 रुपए प्रति किलो की दर पर बेचती हैं। दिल्ली में 20 साल से रह रहे किम सुंग सु उनके ग्राहकों में से एक हैं। वो 2006 से ही सत्तू पी रहे हैं। 65 साल के किम सुंग सु ने फोन पर बताया कि वो छह महीने का सत्तू मंगाकर रख लेते हैं और उसे सुबह शहद के साथ पीते हैं।

आपदा के वक्त मुफ्त सत्तू बांटने की हो रही है तैयारी


दिल्ली में 20 साल से रह रहे किम सुंग सु कहते है, "ये बहुत स्वादिष्ट है और किसी भी हेल्थ ड्रिंक से बहुत अच्छा है। मैं चाहूंगा कि इसमें थोड़ा सी चीनी मिलाकर बेचा जाए ताकि ये एकदम रेडीमेड ड्रिंक की तरह तैयार हो जाए। साथ ही कुछ और भी अनाज इसमें डाले जाएं।"

ली ने अपने इस ग्राहक के सुझाव पर काम करना शुरू कर दिया है। उन्होंने दिसंबर 2015 में पटना के पास हाजीपुर में सत्तू ड्रिंक बनाना शुरू कर दिया है। ये काम वो अपने कोरियाई अमेरीकी मित्र जॉन डब्लू चे और विलियम आर कुमार के साथ मिलकर कर रही हैं। इस पाउडर में वो बहुत सारे अनाज मिला कर रही हैं। जॉन डब्लू चे कहते हैं, "हम इसको आपदा के वक्त के खाने की तरह विकसित करना चाहते हैं। जहां कहीं भी आपदा हो, भुखमरी हो वहां हमारी संस्था 'बिनचे' इसे मुफ्त बांटेगी।"

'मैं भी हूं सत्तू की दीवानी'


हाल ही में जब पटना के पास गंगहारा गांव में आग लगी तो ग्रेस ली ने अपना ये उत्पाद गांव वालों में बांटा। हालांकि ग्रेस ली के इस नए काम ने उनके सत्तू के कारोबार में ब्रेक लगा दिया है। ऐसे में उनके कोरियाई दोस्त थोड़े परेशान भी हैं।

ग्राहक किम सुंग सु कहते हैं, "बाजार में सत्तू मिलता है। लेकिन ग्रेस ली वाले सत्तू जैसी शुद्धता नहीं होती।" अपने पुराने ग्राहकों को निराश करने का दुख ग्रेस ली के चेहरे पर भी झलकता है। वो कहती है, "थोड़ा इंतजार कर लीजिए, वक्त मिलने पर फिर तैयार करेंगे सत्तू। आखिर मैं भी तो आपकी तरह सत्तू की दीवानी हूं।"

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